मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदीमेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदीशहर में जिस दिन क़त्ल हुआ मैं ईद मनाई लोगों ने
ऐसा नहीं कि दिल में तेरी तस्वीर नहीं थीऐसा नहीं कि दिल में तेरी तस्वीर नहीं थीपर हाथो में तेरे नाम की लकीर नहीं थी।
मैंने उस से बस इतना ही पूछा था किमैंने उस से बस इतना ही पूछा था किएक पल में किसी की जान कैसे निकल जाती हैउस ने चलते चलते अपना हाथमेरे हाथ से छुड़ा लिया.....
मेरे ही हाथों पर लिखी है तकदीर मेरीमेरे ही हाथों पर लिखी है तकदीर मेरी;और मेरी ही तक़दीर पर मेरा बस नहीं चलता
आँख उठाकर भी न देखूँआँख उठाकर भी न देखूँ, जिससे मेरा दिल न मिले;जबरन सबसे हाथ मिलाना, मेरे बस की बात नहीं...