अपने हमराह जो आते हो इधर से पहलेअपने हमराह जो आते हो इधर से पहलेदश्त पड़ता है मियां इश्क़ में घर से पहलेचल दिये उठके सू-ए-शहर-ए-वफ़ा कू-ए-हबीबपूछ लेना था किसी ख़ाक बसर से पहलेइश्क़ पहले भी किया हिज्र का ग़म भी देखाइतने तड़पे हैं न घबराये न तरसे पहलेजी बहलता ही नहीं अब कोई सअत कोई पलरात ढलती ही नहीं चार पहर से पहलेहम किसी दर पे न ठिठके न कहीं दस्तक दीसैकड़ों दर थे मेरी जां तेरे दर से पहलेचाँद से आँख मिली जी का उजाला जागाहमको सौ बार हुई सुबह सहर से पहल
जब भी तेरे बिना रात होती हैजब भी तेरे बिना रात होती हैदीवारों से अक्सर बात होती हैसन्नटा पूछता है हमारा हाल हम सेऔर बस तेरे नाम से ही शुरुआत होती है
ऐ पलक तू बंद हो जाऐ पलक तू बंद हो जाख्बाबों में उसकी सूरत तो नजर आयेगीइंतज़ार तो सुबह दोबारा शुरू होगाकम से कम रात तो खुशी से कट जायेगी