वो तो ख़ुश्बू हैवो तो ख़ुश्बू है..वो तो ख़ुश्बू है हवाओं में बिखर जायेगामसला फूल का है फूल किधर जायेगाहम तो समझे थे के एक ज़ख़्म है भर जायेगाक्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगावो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता हैएक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगावो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लियेमौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगाआख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगीतेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा
अंदर का ज़हर चूम लियाअंदर का ज़हर चूम लिया...अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आए गएकितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गये.सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफसारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गये.मस्जिद में कोइ दूर-दूर दूसरा ना थाहम आज अपने आप में मिल-जुल के आ गये.नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्रआँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गये.सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बारआईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गये.अनजाने साए फिरने लगे है इधर-उधरमौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए