थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शबथी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शबवो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्याआरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्याक्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्याग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखीदेखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या