वक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयावक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयाक्यों न मुझ को भी तेरे दर से उठा कर ले गयारात अपने चाहने वालों पे था वो मेहर-बाँमैं न जाता था मगर वो मुझ को आ कर ले गयाएक सैल-ए-बे-अमाँ जो आसियों को था सज़ानेक लोगों के घरों को भी बहा कर ले गयामैं ने दरवाज़ा न रक्खा था के डरता था मगरघर का सरमाया वो दीवारें गिरा कर ले गयावो अयादत को तो आया था मगर जाते हुएअपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गयामेहर-बाँ कैसे कहूँ मैं 'अर्श' उस बे-दर्द कोनूर आँखों का जो इक जलवा दिखा कर ले गया
बदल गया वक़्बदल गया वक़्,त बदल गयी बातें, बदल गयी मोहब्बतकुछ नहीं बदला तो वो है इन आँखों की नमी और तेरी कमी
वक़्त गुज़रेगा तो हम संभाल जाएँगेवक़्त गुज़रेगा तो हम संभाल जाएँगेमौत आने से पहले समझ जाएँगेकि बेवफ़ाई उनकी फ़ितरत है, ना की मजबूरीतन्हाई में ही सही, हम फिर से बस जाएँगे
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगीरात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगीदेखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
इंतज़ार करते करते वक़्त क्यों गुजरता नहीं!इंतज़ार करते करते वक़्त क्यों गुजरता नहींसब हैं यहाँ मगर कोई अपना नहींदूर नहीं पर फिर भी वो पास नहींहै दिल में कहीं पर आँखों से दूर कहीं