फ़राज़ अब कोई सौदाफ़राज़ अब कोई सौदा.. फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं;. लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला.मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं.मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ;जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं. "फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है; तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं
कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहींकोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहींसौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नहीइश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूलमेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही
जिस कश्ती के मुक़द्दर में हो डूब जाना फ़राज़जिस कश्ती के मुक़द्दर में हो डूब जाना फ़राज़तूफानों से बच भी निकले तो किनारे रूठ जाते है