हो कर मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिʲहो कर मायूस न यूँ शाम से ढलते रहि90fज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिएएक ही पाँव पर ठहरोगे तो थक जाओगेधीरे-धीरे ही सही राह पर सदा चलते रहिए
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमीहर तरफ हर जगह बेशुमार आदमीफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमीसुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआअपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमीहर तरफ भागते दौड़ते रास्तेहर तरफ आदमी का शिकार आदमीरोज जीता हुआ रोज मरता हुआहर नए दिन नया इंतज़ार आदमीज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़रआखिरी सांस तक बेक़रार आदमी