मुझे छोड़कर वो खुश हैंमुझे छोड़कर वो खुश हैं, तो शिकायत कैसीअब मैं उन्हें खुश भी न देखूं तो मोहब्बत कैसी
किसी को इतना भी ना चाहो किकिसी को इतना भी ना चाहो कि, भुलाना मुश्किल हो जाएक्योंकि जिंदगी, इन्सान, और मोहब्बत तीनो बेवफा है
अब भी इल्जाम-ए-मोहब्बत है हमारे सिर परअब भी इल्जाम-ए-मोहब्बत है हमारे सिर परअब तो बनती भी नहीं यार हमारी उसकी
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरीकहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरीलब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
बहुत ज़ालिम हो तुम भीबहुत ज़ालिम हो तुम भी, मोहब्बत ऐसे करते होजैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो