पुकारती है ख़ामोशीपुकारती है ख़ामोशी..पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरहनिग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबाँ की तरहजला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक कियाबहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरहतलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोईहमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरहछुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों कोलगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरहहम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसाहिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह
सफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़ामोशी सेसफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़ामोशी सेके सतह-ए-आब पे कोई हबाब तक न उठासमझ न इज्ज़ इसे तेरे पर्दा-दार थे हमहमारा हाथ जो तेरे नक़ाब तक न उठाझिंझोड़ते रहे घबरा के वो मुझे लेकिनमैं अपनी नींद से यौम-ए-हिसाब तक न उठाजतन तो ख़ूब किए उस ने टालने के मगरमैं उस की बज़्म से उस के जवाब तक न उठा