अब मगर कुछ भी नहींअब मगर कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं हो सकताअपने जज़्बों से यह रंगीन शरारत न करोकितनी मासूम हो, नाज़ुक हो, हमाक़त न करोबार बार हाँ तुम से कहा था कि मोहब्बत न करो
मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँमैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँकोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए