गुल को महबूब में क़यास कियागुल को महबूब में क़यास कियाफ़र्क़ निकला बहोत जो बास कियादिल ने हम को मिसाल-ए-आईनाएक आलम से रू-शिनास कियाकुछ नहीं सूझता हमें उस बिनशौक़ ने हम को बे-हवास कियासुबह तक शमा सर को ढुँढती रहीक्या पतंगे ने इल्तेमास कियाऐसे वहाशी कहाँ हैं अए ख़ुबाँ'मीर' को तुम ने अबस उदास किया
उसने महबूब ही तो बदला है फिर ताज्जुब कैसाउसने महबूब ही तो बदला है फिर ताज्जुब कैसादुआ कबूल ना हो तो लोग खुदा तक बदल लेते है