हुस्न पर जब भी मस्ती छाती हैहुस्न पर जब भी मस्ती छाती हैतब शायरी पर बहार आती हैपीके महबूब के बदन की शराबजिंदगी झूम-झूम जाती है
बैठे थे अपनी मस्ती में कि अचानक तड़प उठेबैठे थे अपनी मस्ती में कि अचानक तड़प उठेआ कर तुम्हारी याद ने अच्छा नहीं किया
बैठे थे अपनी मस्ती में कि अचानक तड़प उठेबैठे थे अपनी मस्ती में कि अचानक तड़प उठेआ कर तुम्हारी याद ने अच्छा नहीं किया
तू महक बन कर मुझ से गुलाबों में मिला करतू महक बन कर मुझ से गुलाबों में मिला करजिसे छू कर मैं महसूस कर सकूँतू मस्ती की तरह मुझ से शराबों में मिला करमैं भी इंसान हूँ, डर मुझ को भी है बहक जाने काइस वास्ते तू मुझ से हिजाबों में मिला कर
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँथोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँकुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादेंजीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ