निगाहों का मर्कज़निगाहों का मर्कज़..निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँमोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँमैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरियाअज़ल से अबद तक बहा जा रहा हूँवही हुस्न जिसके हैं ये सब मज़ाहिरउसी हुस्न से हल हुआ जा रहा हूँन जाने कहाँ से न जाने किधर कोबस इक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूँन सूरत न मआनी न पैदा, न पिन्हाये किस हुस्न में गुम हुआ जा रहा हूँ
निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँनिगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँमोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँमैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरियाअज़ल से अबद तक बहा जा रहा हूँवही हुस्न जिसके हैं ये सब मज़ाहिरउसी हुस्न से हल हुआ जा रहा हूँन जाने कहाँ से न जाने किधर कोबस इक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूँन सूरत न मआनी न पैदा, न पिन्हाये किस हुस्न में गुम हुआ जा रहा हूँ
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैंसाफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैंमुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं;एक तस्वीर-ए-मोहब्बत है जवानी गोया,जिस में रंगो की एवज़ ख़ून-ए-जिगर भरते हैंइशरत-ए-रफ़्ता ने जा कर न किया याद हमेंइशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैंआसमां से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशीअब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैंशेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिनअच्छे शायर ये सुना है कि जवां मरते हैं
ज़माने भर की निगाहों में जो खुदा सा लगेज़माने भर की निगाहों में जो खुदा सा लगेवो अजनबी है मगर मुझ को आशना सा लगेन जाने कब मेरी दुनिया में मुस्कुराएगावो शख्स जो ख्वाबों में भी खफा सा लगे