तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आतू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आमेरे यक़ीं में गश्त कर मेरी हद-ए-गुमाँ में आनींदों में दौड़ता हुआ तेरी तरफ़ निकल गयातू भी तो एक दिन कभी मेरे हिसार-ए-जाँ में आइक शब हमारे साथ भी ख़ंजर की नोक पर कभीलर्ज़ीदा चश्म-ए-नम में चल जलते हुए मकाँ में आनर्ग़े में दोस्तों के तू कब तक रहेगा सुर्ख़-रूनेज़ा-ब-नेज़ा दू-ब-दू-सफ़्हा-ए-दुश्मनान में आइक रोज़ फ़िक्र-ए-आब-ओ-नाँ तुझ को भी हो जान-ए-जहाँक़ौस-ए-अबद को तोड़ कर इस अर्सा-ए-ज़ियाँ में आ
माने जो कोई बातमाने जो कोई बात, तो एक बात बहुत हैसदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत हैदिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर एक बातऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत हैमहीने में किसी रोज़, कहीं चाय के दो कपइतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत हैरसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछीइस दौर में अब इतनी मदारात बहुत हैदुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हमकहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत हैफिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' सेऐ दोस्त अभी गर्मी-ए-हालात बहुत है
मुड़-मुड़ कर ना देख मुझे यूँ हँसते-हँसतेमुड़-मुड़ कर ना देख मुझे यूँ हँसते-हँसतेअर्ज़ किया हैमुड़-मुड़ कर ना देख मुझे यूँ हँसते-हँसतेकहीं ऐसा ना हो मेरे दोस्त तुझे कह दें भाभी जी नमस्ते