दुश्मन भी पेशदुश्मन भी पेश..दुश्मन भी पेश आए हैं दिलदार की तरहनफरत मिली है उनसे मुझे प्यार की तरहकैसे मिलेंगे चाहने वाले बताईयेदुनिया खड़ी है राह में दीवार की तरहवो बेवफ़ाई करके भी शर्मिंदा ना हुएसूली पे हम चढ़े हैं गुनहगार की तरहतूफ़ान में मुझ को छोड़ कर वो लोग चल दिएसाहिल पर थे जो साथ में पतवार की तरहचेहरे पर हादसों ने लिखीं वो इबारतेंपढ़ने लगा हर कोई मुझे अख़बार की तरहदुश्मन भी हो गए हैं मसीहा सिफ़त जमालमिलते हैं टूट कर वो गले यार की तरह
वफ़ा के शीश महलवफ़ा के शीश महल..वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंनेवो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंनेयह सोच कर कि ना हो ताक में ख़ुशी कोईग़मों की ओट में खुद को छुपा लिया मैंनेकभी ना ख़त्म किया मैंने रौशनी का मुहाज़अगर चिराग बुझा, दिल जला लिया मैंनेकमाल यह है कि जो दुश्मन पर चलाना थावो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने'क़ातिल' जिसकी अदावत में एक प्यार भी थाउस आदमी को गले से लगा लिया मैंने
कह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुईकह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुईहाय कैसे इस भरी महफ़िल में रुसवाई हुईआईने में हर अदा को देख कर कहते हैं वोआज देखा चाहिये किस किस की है आई हुईकह तो ऐ गुलचीं असीरान-ए-क़फ़स के वास्ते,तोड़ लूँ दो चार कलियाँ मैं भी मुर्झाई हुईमैं तो राज़-ए-दिल छुपाऊँ पर छिपा रहने भी दे,जान की दुश्मन ये ज़ालिम आँख ललचाई हुईग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा सब में हया का है लगावहाए रे बचपन की शोख़ी भी है शर्माई हुईगर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला के कहावाह सर चढ़ने लगी पाँओं की ठुकराई हुई
कभी दूर जा के रोये कभी पास आके रोयेकभी दूर जा के रोये कभी पास आके रोयेहमें रुलाने वाले हमें रुला के रोयेमरने को तो मरते हैं सभी यारोंपर मरने का तो मजा ही तब हैजो दुश्मन भी जनाजे पे आ के रोये
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गयायह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गयाकि तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए
वो जो बन के दुश्मन मुझे जीतने को निकले थेवो जो बन के दुश्मन मुझे जीतने को निकले थेकर लेते अगर मोहब्बत मैं खुद ही हार जाता