मुँह तका ही करेमुँह तका ही करे..मुँह तका ही करे है जिस-तिस काहैरती है ये आईना किस काशाम से कुछ बुझा सा रहता हैदिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस काफ़ैज़ अय अब्र चश्म-ए-तर से उठाआज दामन वसीअ है इसकाताब किसको जो हाल-ए-मीर सुनेहाल ही और कुछ है मजलिस का
कई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो-आलम सेकई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो-आलम सेमगर दिल है कि उसकी खाना-वीरानी नहीं जातीकई बार इसकी खातिर ज़र्रे-ज़र्रे का जिगर चीरामगर ये चश्म-ए-हैरां, जिसकी हैरानी नहीं जाती;नहीं जाती मताए-लाला-ओ-गौहर की गरांयाबीमताए-ग़ैरत-ओ-ईमां की अरज़ानी नहीं जातीमेरी चश्म-ए-तन आसां को बसीरत मिल गयी जब सेबहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जातीसरे-ख़ुसरव से नाज़-ए-कज़कुलाही छिन भी जाता हैकुलाह-ए-ख़ुसरवी से बू-ए-सुल्तानी नहीं जातीब-जुज़ दीवानगी वां और चारा ही कहो क्या हैजहां अक़्ल-ओ-खिरद की एक भी मानी नहीं जाती
एहसास के दामन में आंसू गिराकर देखोएहसास के दामन में आंसू गिराकर देखोप्यार कितना है आजमा कर देखोतुम्हें भूल कर क्या होगी दिल की हालतकिसी आईने पे पत्थर गिराकर तो देखो