ख़ून से जब जला दियाख़ून से जब जला दिया..ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआफिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआमहफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गईफिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआमुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ हैमेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआदर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रहीवैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआसब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गईऔर मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गएये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गएवो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गएयारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुईउन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गएएक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गयाउमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गएदौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थेलेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गएबाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्मरंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गएबे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र 'हफ़ीज'क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए
ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईइसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोईये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री;दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोईहो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचाआपकी तरह से मेहमान बुलाए कोईतर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसेकरके एहसान, न एहसान जताए कोईक्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोईसर्द-मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्दरखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोईआपने 'दाग़' को मुँह भी न लगाया, अफ़सोसउसको रखता था कलेजे से लगाए कोई
सीने में जलनसीने में जलन..सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यों हैइस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों हैदिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढेपत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यों हैतन्हाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ोता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यों हैहमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म कीवो ज़ूद-ए-पशेमान, परेशान-सा क्यों हैक्या कोई नई बात नज़र आती है हममेंआईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है
ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईइसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोईये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री;दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोईहो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचाआपकी तरह से मेहमान बुलाए कोईतर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसेकरके एहसान, न एहसान जताए कोईक्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोईसर्द -मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्दरखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोईआपने दाग़ को मुँह भी न लगाया, अफ़सोसउसको रखता था कलेजे से लगाए कोई
मैं बुरा ही सही भला न सहीमैं बुरा ही सही भला न सहीपर तेरी कौन सी जफ़ा न सहीदर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रेगर उन्हों ने नहीं सुना न सहीशब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो हैनाला-ए-दिल मेरा रसा न सहीदिल भी अपना नहीं रहा न रहेये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सहीक्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेराचलो बे-जा सही ब-जा न सहीउक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मतन खुला तुझ से ऐ सबा न सहीवाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है 'ऐश'हम ने माना वो पारसा न सही