अक्सर मिलना ऐसा हुआ बसअक्सर मिलना ऐसा हुआ बसलब खोले और उसने कहा बसतब से हालत ठीक नहीं हैमीठा मीठा दर्द उठा बससारी बातें खोल के रखोमैं हूं तुम हो और खुदा बसतुमने दुख में आंख भिगोईमैने कोई शेर कहा बसवाकिफ़ था मैं दर्द से उसकेमिल कर मुझसे फूट पड़ा बसजाने भी तो बात हटाओतुम जीते मैं हार गया बसइस सहरा में इतना कर देमीठा चश्मा,पेड़,हवा बस
आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जातीआँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जातीयादों से कोई रात खा़ली नहीं जातीअब उम्र, ना मौसम, ना रास्ते के वो पत्तेइस दिल की मगर ख़ाम ख़्याली नहीं जातीमाँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँतेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जातीमालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्सेपर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जातीहमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल मेअब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जातीहम जान से जाएंगे तभी बात बनेगीतुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती
निकले हम कहाँ से और किधर निकलेनिकले हम कहाँ से और किधर निकलेहर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकलेतु समझाया किया रो-रो के अपनी बाततेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकलेबरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजारजब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकलेअब संभले के चले 'ज़हर' और सफ़र की सोचऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकलेतु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होतापर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले
मैं बुरा ही सही भला न सहीमैं बुरा ही सही भला न सहीपर तेरी कौन सी जफ़ा न सहीदर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रेगर उन्हों ने नहीं सुना न सहीशब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो हैनाला-ए-दिल मेरा रसा न सहीदिल भी अपना नहीं रहा न रहेये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सहीदेख तो लेंगे वो अगर आएताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ न सहीकुछ तो आशिक़ से छेड़-छाड़ रहीकज-अदाई सही अदा न सहीक्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेराचलो बे-जा सही ब-जा न सहीउक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मतन खुला तुझ से ऐ सबा न सहीवाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है 'ऐश'हम ने माना वो पारसा न सही