ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गएये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गएवो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गएयारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुईउन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गएएक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गयाउमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गएदौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थेलेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गएबाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्मरंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गएबे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र 'हफ़ीज'क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए
मैं बुरा ही सही भला न सहीमैं बुरा ही सही भला न सहीपर तेरी कौन सी जफ़ा न सहीदर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रेगर उन्हों ने नहीं सुना न सहीशब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो हैनाला-ए-दिल मेरा रसा न सहीदिल भी अपना नहीं रहा न रहेये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सहीक्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेराचलो बे-जा सही ब-जा न सहीउक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मतन खुला तुझ से ऐ सबा न सहीवाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है 'ऐश'हम ने माना वो पारसा न सही
आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जातीआँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जातीयादों से कोई रात खा़ली नहीं जातीअब उम्र, ना मौसम, ना रास्ते के वो पत्तेइस दिल की मगर ख़ाम ख़्याली नहीं जातीमाँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँतेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जातीमालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्सेपर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जातीहमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल मेंअब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जातीहम जान से जाएंगे तभी बात बनेगीतुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती
अक्सर मिलना ऐसा हुआ बसअक्सर मिलना ऐसा हुआ बसलब खोले और उसने कहा बसतब से हालत ठीक नहीं हैमीठा मीठा दर्द उठा बससारी बातें खोल के रखोमैं हूं तुम हो और खुदा बसतुमने दुख में आंख भिगोईमैने कोई शेर कहा बसवाकिफ़ था मैं दर्द से उसकेमिल कर मुझसे फूट पड़ा बसइस सहरा में इतना कर देमीठा चश्मा, पेड़, हवा बस