जब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिबजब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिब.."ज़ख्म" का एहसास तब हुआ जब "कमान" देखी अपनों के हाथ में
धड़कन बिना दिल का मतलब ही क्याधड़कन बिना दिल का मतलब ही क्यारौशनी के बिना दिये का मतलब ही क्याक्यों कहते हैं लोग कि मोहब्बत न कर दर्द मिलता हैवो क्या जाने कि दर्द बिना मोहब्बत का मतलब ही क्या
बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती हैबिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती हैयह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती हैतड़प उठता हूँ दर्द के मारे, ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती हैअगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँमुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है
वो हमें भूल भी जायें तो कोई गम नहींवो हमें भूल भी जायें तो कोई गम नहींजाना उनका जान जाने से भी कम नहींजाने कैसे ज़ख़्म दिए हैं उसने इस दिल कोकि हर कोई कहता है कि इस दर्द की कोई मरहम नहीं