सोचते हैं सीख लें हम भी बेरुखी करनासोचते हैं सीख लें हम भी बेरुखी करनाप्यार निभाते-निभाते लगता है हमने अपनी ही कदर खो दी
सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हेंसिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हेंकि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो
देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तहा 'मोहसिन'देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तहा 'मोहसिन'हम पे नज़र पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए
कब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हम सेकब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हम सेमिलना पड़ेगा आखिर कभी ज़रूर हम सेनज़रें चुराने वाले ये बेरुखी है कैसीकह दो अगर हुआ है कोई कसूर हम से
सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हेंसिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हेंकि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो
कब तक रहोगे आखिर यूं दूर हमसेकब तक रहोगे आखिर यूं दूर हमसेमिलना पड़ेगा आखिर एक दिन जरूर हमसेदामन बचाने वाले ये बेरुखी है कैसीकह दो अगर हुआ है कोई कसूर हमसे