उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम कियाउल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम कियादेखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया।
देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब सेदेखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब सेचहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब सेसाहिर लुधियानवी!
देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब सेदेखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब से, कि चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब सेइस रेंगती हयात का कब तक उठाएं भार, बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब सेकुछ इस तरह दिया है ज़िन्दगी ने हमारा साथ जैसे कोई निभा रहा हो रकीब सेए रूह-ए-असर जाग कहाँ सो रही है तू, आवाज़ दे रहे हैं पयम्बर सलीब से