तुम्हारे जैसे लोग जबसेतुम्हारे जैसे लोग जबसे..तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहेखंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर केवो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहेसब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैंतुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहेउसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान लीहमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहेबहुत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशनातुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहेअसीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं मेंपरिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहेखंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर केवो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहेसब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैंतुम्हारे शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहेउसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान लीहमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहेबहुत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना;तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहेअसीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं मेंपरिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहेखंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर केवो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहेसब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैंतुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहेंउसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान लीहमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहेबोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशनातुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहेअसीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं मेंपरिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहेतभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहेखंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर केवो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहेसब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं;तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहेंउसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान लीहमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहेबोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशनातुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहेअसीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं मेंपरिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे
अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआअब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआइस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों कीवो नाम जो मेरे होंटों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआउस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गएइक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआवो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता थाअब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआबेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों मेंऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ
हम हो गए तुम्हारेहम हो गए तुम्हारे, तुम्हें सोचने के बादअब न देखेंगे किसी को, तुम्हें देखने के बाददुनिया छोड़ देंगे, तुम्हें छोड़ने के बादखुदा! माफ़ करे इतने झूठ बोलने के बाद!