परछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछपरछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछअपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा ना था
किसी ने हमें रुलाया तो क्या बुरा कियाकिसी ने हमें रुलाया तो क्या बुरा किया;दिल को दुखाया तो क्या बुरा किया;हम तो पहले से ही तन्हा थेकिसी ने एहसास दिलाया तो क्या बुरा किया
ज़िक्र उनका ही आता है मेरे फ़साने मेंज़िक्र उनका ही आता है मेरे फ़साने मेंजिनको जान से ज्यदा चाहते थे हम किसी ज़माने मेंतन्हाई में उनकी ही याद का सहारा मिलाजिनको नाकाम रहे हम भुलानें में
ये मत कहना कि तेरी याद से रिश्ता नहीं रखाये मत कहना कि तेरी याद से रिश्ता नहीं रखामैं खुद तन्हा रहा मगर दिल को तन्हा नहीं रखातुम्हारी चाहतों के फूल तो महफूज़ रखे हैंतुम्हारी नफरतों की पीड़ को ज़िंदा नहीं रखा
मेरी तन्हाइयां करती हैं जिन्हें याद सदामेरी तन्हाइयां करती हैं जिन्हें याद सदाउन को भी मेरी ज़रुरत हो ज़रूरी तो नहीं
ज़िक्र अक्सर तेरा ही आता हैं हर अफ़साने मेंज़िक्र अक्सर तेरा ही आता हैं हर अफ़साने मेंतुझे जान से ज्यादा चाहा हमने ज़माने मेंतन्हाई में तेरा ही सहारा मिलानाकाम रहे तुझे अक्सर हम भुलाने में