मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तन्हा न कर दे ग़ालिबमशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तन्हा न कर दे ग़ालिबरिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं
भीड़ में भी आज भी तन्हा खड़े हैंभीड़ में भी आज भी तन्हा खड़े हैंजहाँ उनका साथ होना था वहाँ भी अकेले खड़े हैं
तन्हा हो कभी तो मुझे ढूंढ लेनातन्हा हो कभी तो मुझे ढूंढ लेनाइस दुनियां से नहीं अपने दिल से पूछ लेनाआपके आस पास ही कहीं रहते हैं हमयादों से नहीं तो साथ गुज़ारे लम्हों से पूछ लेना
यह रात इतनी तन्हा क्यों होती हैयह रात इतनी तन्हा क्यों होती हैकिस्मत से अपनी सबको शिकायत क्यों होती हैअजीब खेल खेलती है ये किस्मत भीजिसे पा नहीं सकते उसी से मोहब्बत क्यों होती है