लोग हर मोड़ पेलोग हर मोड़ पे..लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैंइतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैंमैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँरोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैंनींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों सेख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैंमोड़ होता है जवानी का संभलने के लिएऔर सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं