उसके तुरंत बाद हीउसके तुरंत बाद ही...उसके तुरंत बाद ही बदली है ज़िन्दगीजीवन में चंद फैसले इतने अहम् रहेअनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दीहिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहेवो अपने बल पे दौड़ को जीते नहीं कभीजो लोग, जोड़ तोड़ में सबसे प्रथम रहे।
कोई सूरत निकलतीकोई सूरत निकलती..कोई सूरत निकलती क्यों नहीं हैयहाँ हालत बदलती क्यों नहीं हैये बुझता क्यों नहीं है उनका सूरजहमारी शमा जलती क्यों नहीं हैअगर हम झेल ही बैठे हैं इसकोतो फिर ये रात ढलती क्यों नहीं हैमोहब्बत सिर को चढ़ जाती है, अक्सरमेरे दिल में मचलती क्यों नहीं है
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुईरेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुईतेरी दर्द-गुसारी से भी रूह की उलझन कम न हुईशाख़ से टूट के बे-हुरमत हैं वैसे बे-हुरमत थेहम गिरते पत्तों पे मलामत कब मौसम मौसम न हुईनाग-फ़नी सा शोला है जो आँखों में लहराता हैरात कभी हम-दम न बनी और नींद कभी मरहम न हुईअब यादों की धूप छाँव में परछाईं सा फिरता हूँमैंने बिछड़ कर देख लिया है दुनिया नरम क़दम न हुईमेरी सहरा-ज़ाद मोहब्बत अब्र-ए-सियह को ढूँडती हैएक जनम की प्यासी थी इक बूँद से ताज़ा-दम न हुई
अच्छी सूरत को सवारने की ज़रूरत क्या हैअच्छी सूरत को सवारने की ज़रूरत क्या हैसादगी भी तो क़यामत की अदा होती है
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसीकुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत नहीं हुईजिसको चाहा उसे अपना न सके, जो मिला उससे मुहब्बत न हुई