खामोश हो क्योंखामोश हो क्यों..खामोश हो क्यों दादे-जफ़ा क्यों नहीं देतेबिस्मिल हो, तो कातिल को दुआ क्यों नहीं देतेवहशत का सबब रौज़ने-जिनदाँ तो नहीं हैमहरो-महो-अंजुम को बुझा क्यों नहीं देतेइक ये भी तो अंदाज़े-इलाजे-गमे-जाँ हैऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यों नहीं देतेमुंसिफ हो अगर तुम तो कब इन्साफ करोगेमुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यों नहीं देतेरह्ज़न हो तो हाजिर है मताए-दिलो-जाँ भीरहबर हो तो मंजिल का पता क्यों नहीं देते
तुम मिल जाओगे जब कभीतुम मिल जाओगे जब कभीतो इस दिल को आराम आएगावरना खामोश सा रहेगाये दिल तन्हाइयों में खो जायेगा
रात गुम सुम है मगर खामोश नहीरात गुम सुम है मगर खामोश नहीकैसे कह दूँ आज फिर होश नहीऐसे डूबा हूँ तेरी आँखों की गहराई मेंहाथ में जाम है मगर पीने का होश नही
ये जो खामोश से अल्फाज़ लिखेे हैं नाये जो खामोश से अल्फाज़ लिखेे हैं नापढना कभी ध्यान से चीखते कमाल हैं
खामोश थे हम तो मगरूर समझ लियाखामोश थे हम तो मगरूर समझ लियाचुप हैं हम तो मजबूर समझ लियायही आप की खुशनसीबी है कि हम इतने क़रीब हैंफिर भी आप ने दूर समझ लिया
तुम्हीं कहते थे कि यह मसले नज़र सुलझी तो सुलझेंगेतुम्हीं कहते थे कि यह मसले नज़र सुलझी तो सुलझेंगेनज़र की बात है तो फिर यह लब खामोश रहने दो