वफ़ाएँ कर केवफ़ाएँ कर के..वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जाइसी तरह से ज़माने को आज़माए जाकिसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहींजिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सिर झुकाए जावो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल सेवफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जानज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकतीनज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जाख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखेंहै आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जाथी इब्तिदा में ये तादीब-ए-मुफ़लिसी मुझ कोग़ुलाम रह के गुलामी पे मुस्कुराए जा
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़मवफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म..वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जाइसी तरह से ज़माने को आज़माए जाकिसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहींजिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सर झुकाए जावो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल सेवफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जानज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकतीनज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जाख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखेंहै आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जावफ़ा का ख़्वाब है 'एहसान' ख़्वाब-ए-बे-ताबीरवफ़ाएँ कर के मुक़द्दर को आज़माए जा
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं कावफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का..वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जाइसी तरह से ज़माने को आज़माए जाकिसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहींजिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सिर झुकाए जावो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल सेवफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जानज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकतीनज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जाख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखेंहै आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जावफ़ा का ख़्वाब है 'एहसान' ख़्वाब-ए-बे-ताबीरवफ़ाएँ कर के मुक़द्दर को आज़माए जा
तेरे कमाल की हदतेरे कमाल की हतेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझाउसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझाकभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आरामग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझापयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदाकई तरह इसी मतलब को नामाबर समझान खुल सका तेरी बातों का एक से मतलबमगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा
कोई तो फूल खिलाएकोई तो फूल खिलाए..कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे मेंअजब तरह की घुटन है हवा के लहजे मेंये वक़्त किस की रुऊनत पे ख़ाक डाल गयाये कौन बोल रहा था ख़ुदा के लहजे मेंन जाने ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कौन से अज़ाब में हैहवाएँ चीख़ पड़ीं इल्तिजा के लहजे मेंखुला फ़रेब-ए-मोहब्बत दिखाई देता हैअजब कमाल है उस बे-वफ़ा के लहजे मेंयही है मसलहत-ए-जब्र-ए-एहतियात तो फिरहम अपना हाल कहेंगे छुपा के लहजे में
तेरे कमाल की हदतेरे कमाल की हद..तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझाउसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझाकभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आरामग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझापयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदाकई तरह इसी मतलब को नामाबर समझान खुल सका तेरी बातों का एक से मतलबमगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा