किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझेकिसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझेगुज़र गयी जरस-ए-गुल उदास करके मुझेमैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ मेंजगा के छोड़ गए काफिले सहर के मुझेशब्दार्थजरस-ए-गुल = फूलों की लड़शबिस्ताँ = बिस्त
कितना कुछ जानता होगा वो शख्स मेरे बारे मेंकितना कुछ जानता होगा वो शख्स मेरे बारे मेंमेरे मुस्कुराने पर भी जिसने पूछ लिया कि तुम उदास क्यों हो
मुझे ये डर है तेरी आरज़ू ना मिट जाएमुझे ये डर है तेरी आरज़ू ना मिट जाएबहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं