क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआर काक्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआर काक्या इश्क़ पाएदार से ना-पाएदार कावो इश्क़ जिस की शमा बुझा दे अजल की फूँकउस में मज़ा नहीं तपिश-ओ-इंतिज़ार का
हम जानते तो इश्क़ न करते किसी के साथहम जानते तो इश्क़ न करते किसी के साथले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ
मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतनामुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतनाकुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिबइश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिबकि लगाए न लगे और बुझाए न बने
फिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पेफिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पेमयख़ाने से कह दो दरवाज़ा खुला रखे