इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिबइश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिबकि लगाए न लगे और बुझाए न बने
फिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पेफिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पेमयख़ाने से कह दो दरवाज़ा खुला रखे