लौट के उसी दो राहे परलौट के उसी दो राहे पर...लौट के उसी दो राहे पर बार-बार पहुँचामैं कहीं भी पहुंचा बस बेकार पहुंचासारी रात गुज़ार दी चंद लफ़्ज़ों के साथमेरे सवाल से पहले उनका इनकार पहुँचामैं कहीं भी..रूह की गहराईयों में राह तकती आंखेंजहाँ तू नहीं पहुँचा वहाँ इंतज़ार पहुँचामैं कहीं भी..होश न आया फिर होश जाने के बादमैं गया किधर भी मगर कूचा ए यार पहुँचामैं कहीं भी..डूब के जाना है ये तो मालूम था 'वीर'नज़र नहीं आता जहाँ कोई मैं उस पार पहुँचामैं कहीं भी...
आँखों के इंतज़ार कोआँखों के इंतज़ार को..आँखों के इंतज़ार को दे कर हुनर चला गया;चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया;दिन की वो महफिलें गईं, रातों के रतजगे गए;कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया;झोंका है एक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी;हर-सू बिखर-बिखर गई ख़ुशबू जिधर चला गया;उसके ही दम से दिल में आज धूप भी चाँदनी भी है;देके वो अपनी याद के शम्स-ओ-क़मर चला गया.कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कब से भटक रहा है दिलहमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया
तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ारतेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार..तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से हैन शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से हैकिसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़मगिला है जो भी किसी से तेरे सबब से हैहुआ है जब से दिल-ए-नासुबूर बेक़ाबूकलाम तुझसे नज़र को बड़े अदब से हैअगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिलेतरह तरह की तलब तेरे रंगे-लब से हैकहाँ गये शबे-फ़ुरक़त के जागनेवालेसितारा-ए-सहरी हमकलाम कब से है
तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ारतेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार..तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से हैन शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से हैकिसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़मगिला है जो भी किसी से तेरी सबब से हैहुआ है जब से दिल-ए-नासबूर बेक़ाबूकलाम तुझसे नज़र को बड़ी अदब से हैअगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिलेतरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से हैकहाँ गये शब-ए-फ़ुरक़त के जागनेवालेसितारा-ए-सहर हम-कलाम कब से है
तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ारतेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार..तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से हैन शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से हैकिसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़मगिला है जो भी किसी से तेरी सबब से हैहुआ है जब से दिल-ए-नासबूर बेक़ाबूकलाम तुझसे नज़र को बड़ी अदब से हैअगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिलेतरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से हैकहाँ गये शब-ए-फ़ुरक़त के जागने वालेसितारा-ए-सहर हम-कलाम कब से है
आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गयाआँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गयाचाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गयादिन की वो महफिलें गईं, रातों के रतजगे गएकोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया