रोज़ तारों की नुमाइश मेंरोज़ तारों की नुमाइश में..रोज़ तारों की नुमाइश में ख़लल पड़ता हैचाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता हैएक दीवाना मुसाफ़िर है मेरी आँखों मेंवक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है, चल पड़ता हैरोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैरोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता हैउसकी याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलोधडकनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
आहिस्ता आहिस्ता आपका यकीन करने लगे हैंआहिस्ता आहिस्ता आपका यकीन करने लगे हैंआहिस्ता आहिस्ता आपके करीब आने लगे हैंदिल तो देने से घबराते हैं मगरआहिस्ता आहिस्ता आपके दिल की कदर करने लगे हैं