ये आरज़ू थी तुझे गुल केये आरज़ू थी तुझे गुल के..ये आरज़ू थी तुझे गुल के रूबरू करतेहम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तगू करतेपयाम बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआज़बान-ए-ग़ैर से क्या शर की आरज़ू करतेमेरी तरह से माह-ओ-महर भी हैं आवाराकिसी हबीब को ये भी हैं जुस्तजू करतेजो देखते तेरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलमअसीर होने के आज़ाद आरज़ू करतेन पूछ आलम-ए-बरगश्ता तालि-ए-आतिशबरसती आग में जो बाराँ की आरज़ू करते
ये आरज़ू थीये आरज़ू थी..ये आरज़ू थी तुझे गुल के रूबरू करतेहम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तगू करतेपयाम बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआज़बान-ए-ग़ैर से क्या शर की आरज़ू करतेमेरी तरह से माह-ओ-महर भी हैं आवाराकिसी हबीब को ये भी हैं जुस्तजू करतेजो देखते तेरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलमअसीर होने के आज़ाद आरज़ू करतेन पूछ आलम-ए-बरगश्ता तालि-ए-'आतिश'बरसती आग में जो बाराँ की आरज़ू करते
ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदमये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदमविसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करेंहम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करेंदिल ही नहीं रहा है कि कुछ आरज़ू करें
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्याआरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्याक्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्याग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखीदेखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने कीआरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने कीलम्हें तो खुद-ब-खुद मिल जाया करते हैं