अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम परअधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर,अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती
अधूरी हसरतों का आज भी इल्ज़ाम है तुम परअधूरी हसरतों का आज भी इल्ज़ाम है तुम परअगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती
वो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगीवो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगीपास होकर भी कुछ दूरी सी लगीहोंठों पे हँसी आँखों में नमीपहली बार किसी की चाहत ज़रूरी सी लगी