अजनबी ख्वाहिशेंअजनबी ख्वाहिशें... अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ;ऐसे जिद्दी हैं परिन्दें कि उड़ा भी न सकूँ;फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया;ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ;मेरी ग़ैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे;उसने इस तरह बुलाया कि मैं जा भी न सकूँ;इक न इक रोज़ कहीं ढूंढ ही लूँगा तुझको;ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ
इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों केइस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों केआज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों केखल्वतों के शैदाई खल्वतों में खुलते हैंहम से पूछ कर देखो राज़ पर्दादारों केपहले हँस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैंआश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दियारों केतुमने सिर्फ चाहा है हमने छू के देखे हैंपैरहन घटाओं के, जिस्म बर्क-पारों केशगले-मयपरस्ती गो जश्ने-नामुरादी हैयूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के
फिर हुनर-मंदों के घर से बे-बुनर जाता हूँ मैंफिर हुनर-मंदों के घर से बे-बुनर जाता हूँ मैंतुम ख़बर बे-ज़ार हो अहल-ए-नज़र जाता हूँ मैंजेब में रख ली हैं क्यों तुम ने ज़ुबानें काट करकिस से अब ये अजनबी पूछे किधर जाता हूँ मैंहाँ मैं साया हूँ किसी शय का मगर ये भी तो देखगर तआक़ुब में न हो सूरज तो मर जाता हूँ मैंहाथ आँखों से उठा कर देख मुझ से कुछ न पूछक्यों उफ़ुक पर फैलती सुब्हों से डर जाता हूँ मैं'अर्श' रस्मों की पनह-गाहें भी अब सर पर नहींऔर वहशी रास्तों पर बे-सिपर जाता हूँ मैं
इस दुनिया मेँ अजनबी रहना ही ठीक हैइस दुनिया मेँ अजनबी रहना ही ठीक हैलोग बहुत तकलीफ देते है अक्सर अपना बना कर
हम कुछ ना कह सके उनसेहम कुछ ना कह सके उनसे, इतने जज्बातों के बादहम अजनबी के अजनबी ही रहे इतनी मुलाकातो के बाद