अक्ल कहती है, ना जा कूचा-ए-क़ातिल की तरफसरफ़रोशी की हवस कहती है चल क्या होगा
इश्क़ नाज़ुक मिजाज़ है बे-हदअक्ल का बोझ उठा नहीं सकता