फिर इस अंदाज़ सेफिर इस अंदाज़ से..फिर इस अंदाज़ से बहार आईके हुये मेहर-ओ-माह तमाशाईदेखो ऐ सकिनान-ए-खित्ता-ए-ख़ाकइस को कहते हैं आलम-आराईके ज़मीं हो गई है सर ता सररूकश-ए-सतहे चर्ख़े मिनाईसब्ज़े को जब कहीं जगह न मिलीबन गया रू-ए-आब पर काईसब्ज़-ओ-गुल के देखने के लियेचश्म-ए-नर्गिस को दी है बिनाईहै हवा में शराब की तासीरबदानोशी है बाद पैमाईक्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब"शाह-ए-दीदार ने शिफ़ा पाई
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिनआफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिनमरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तन्हा न कर दे ग़ालिबमशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तन्हा न कर दे ग़ालिबरिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं
तकलीफें तो हज़ारों हैं इस ज़माने मेंतकलीफें तो हज़ारों हैं इस ज़माने मेंबस कोई अपना नज़र अंदाज़ करे तो बर्दाश्त नहीं होता
छीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज़ से बोलीछीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज़ से बोलीकमी क्या है इन होठों में जो तुम शराब पीते हो