न सियो होंठन सियो होंठ..न सियो होंठ, न ख़्वाबों में सदा दो हम कोमस्लेहत का ये तकाज़ा है, भुला दो हम कोहम हक़ीक़त हैं, तो तसलीम न करने का सबबहां अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं, तो मिटा दो हम कोशोरिश-ए-इश्क़ में है, हुस्न बराबर का शरीकसोच कर ज़ुर्म-ए-मोहब्बत की, सज़ा दो हम कोमक़सद-जीस्त ग़म-ए-इश्क़ है, सहरा हो कि शहरबैठ जाएंगे जहां चाहे, बिठा दो हम को
होंठ कह नहीं सकते जो फ़साना दिल काहोंठ कह नहीं सकते जो फ़साना दिल काशायद नज़रों से वो बात हो जाएइस उम्मीद से करते हैं इंतज़ार रात काकि शायद सपनों में ही मुलाक़ात हो जाए
होंठ कह नही सकते जो फ़साना दिल काहोंठ कह नही सकते जो फ़साना दिल काशायद नजरों से वो बात हो जाएइसी उम्मीद में इंतजार करते हैं रात काकि शायद सपनों मे ही मुलाकात हो जाए