हर इक लम्हे की रग मेंहर इक लम्हे की रग में..हर इक लम्हे की रग में दर्द का रिश्ता धड़कता हैवहाँ तारा लरज़ता है जो याँ पत्ता खड़कता हैढके रहते हैं गहरे अब्र में बातिन के सब मंज़रकभी इक लहज़ा-ए-इदराक बिजली सा कड़कता हैमुझे दीवाना कर देती है अपनी मौत की शोख़ीकोई मुझ में रग-ए-इज़हार की सूरत फड़कता हैफिर इक दिन आग लग जाती है जंगल में हक़ीक़त केकहीं पहले-पहल इक ख़्वाब का शोला भड़कता हैमेरी नज़रें ही मेरे अक्स को मजरूह करती हैंनिगाहें मुर्तकिज़ होती हैं और शीशा तड़कता है
कुदरत के इन हसीन नज़ारों का हम क्या करेंकुदरत के इन हसीन नज़ारों का हम क्या करेंजब तुम ही साथ नहीं तो इन चाँद सितारों का क्या करें
ना जाने कब वो हसीन रात होगीना जाने कब वो हसीन रात होगीजब उनकी निगाहें हमारी निगाहों के साथ होंगीबैठे हैं हम उस रात के इंतज़ार मेंजब उनके होंठों की सुर्खियां हमारे होंठों के साथ होंगी
हसीनो ने हसीन बन कर गुनाह कियाहसीनो ने हसीन बन कर गुनाह कियाऔरों को तो ठीक पर हमें भी तबाह कियाअर्ज़ किया जब ग़ज़लों में उनकी बेवफाई काऔरों ने तो ठीक उन्होंने भी वाह-वाह किया
हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह कियाहसीनों ने हसीन बन कर गुनाह कियाऔरों को तो क्या हमको भी तबाह कियापेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई कोऔरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया
ना जाने कब वो हसीन रात होगीना जाने कब वो हसीन रात होगीजब उनकी निगाहें हमारी निगाहों के साथ होंगीबैठे हैं हम उस रात के इंतज़ार मेंजब उनके होंठों की सुर्खियां हमारे होंठों के साथ होंगी