ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा थाख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा थादिल का आलम भी बे-मिसाल सा थाअक्स मेरा भी आइनों में नहींवो भी कैफ़ियत-ए-ख़याल सा थादश्त में सामने था ख़ेमा-ए-गुलदूरियों में अजब कमाल सा थाबे-सबब तो नहीं था आँखों मेंएक मौसम के ला-ज़वाल सा थाख़ौफ़ अँधेरों का डर उजालों सेसानेहा था तो हस्ब-ए-हाल सा थाक्या क़यामत है हुज्ला-ए-जाँ मेंउस के होते हुए मलाल सा थाजिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठीहाल उस का भी मेरे हाल सा था
आ देख मेरी आँखों के ये भीगे हुए मौसमआ देख मेरी आँखों के ये भीगे हुए मौसमये किसने कह दिया कि तुम्हें भूल गये हैं हम