साहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आजसाहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आज, कौन ज्यादा मजबूर हैये किनारा जो चल नहीं सकता, या वो लहर जो ठहर नहीं सकती
साहिल पर खड़े-खड़े हमने शाम कर दीसाहिल पर खड़े-खड़े हमने शाम कर दीअपना दिल और दुनिया आप के नाम कर दीये भी न सोचा कैसे गुज़रेगी ज़िंदगीबिना सोचे-समझे हर ख़ुशी आपके नाम कर दी
ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देतीज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देतीभंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देतावो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगीसितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता