महफ़िल भी रोयेगीमहफ़िल भी रोयेगी, हर दिल भी रोयेगाडूबी जो मेरी कश्ती तो साहिल भी रोयेगाइतना प्यार बिखेर देंगे हम इस दुनीया मेंकि मेरी मौत पे मेरा कातिल भी रोयेगा
जब भी कश्ती मेरीजब भी कश्ती मेरी..जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती हैमाँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती हैरोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँरोज़ उँगली मेरी तेज़ाब में आ जाती हैदिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहींसोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती हैरात भर जागते रहने का सिला है शायदतेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती हैज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुएकूचा-ए-रेशम-ओ-कमख़्वाब में आ जाती हैदुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखेंसारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती है
बस इतने में ही कश्ती डुबा दी हमनेबस इतने में ही कश्ती डुबा दी हमनेजहाँ पहुंचना था वो किनारा ना रहागिर पड़ते है लडखडा के कदमों सेजो थामा करता था वो आज सहारा ना रहा
महफ़िल भी रोयेगीमहफ़िल भी रोयेगी, महफ़िल में हर शख्स भी रोयेगाडूबी जो मेरी कश्ती तो चुपके से साहिल भी रोयेगाइतना प्यार बिखेर देंगे हम इस दुनिया में किमेरी मौत पे मेरा क़ातिल भी रोयेगा
जिस कश्ती के मुक़द्दर में हो डूब जाना फ़राज़जिस कश्ती के मुक़द्दर में हो डूब जाना फ़राज़तूफानों से बच भी निकले तो किनारे रूठ जाते है