अब कहाँ रस्मअब कहाँ रस्म..अब कहाँ रस्म घर लुटाने कीबरकतें थी शराब ख़ाने कीकौन है जिससे गुफ़्तुगु कीजेजान देने की दिल लगाने कीबात छेड़ी तो उठ गई महफ़िलउनसे जो बात थी बताने कीसाज़ उठाया तो थम गया ग़म-ए-दिलरह गई आरज़ू सुनाने कीचाँद फिर आज भी नहीं निकलाकितनी हसरत थी उनके आने की
आँखें शराब:आँखें शराबआँखें शराब खानादिल हो गया दीवानानजरों के तीर खा करघायल हुआ जमानाभटकेंगी ये तो दर-दरनजरों का क्या ठिकानानजरों की कदर करनानजरों से ना गिरानानज़रों की आब, इज्जतइस को सदा बढ़ानाशर्म-ओ-हया का जेवरनज़रों का है खज़ानानज़रों के दायरे मेंगैरों को ना बसानानज़रों में बंद रखनातुम राज-ए-दिल छुपाना!