कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना थाकुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना थायहाँ चराग़ वहाँ पर सितारा धरना थावो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुईअभी तो ख़्वाब पे इक और ख़्वाब धरना थाअगर रसा में न था वो भरा भरा सा बदनरंग-ए-ख़याल से उस को तुलू करना थानिगाह और चराग़ और ये असासा-ए-जाँतमाम होती हुई शब के नाम करना थागुरेज़ होता चला जा रहा था मुझ से वोऔर एक पल के सिरे पर मुझे ठहरना था
वो खफा है तो कोई बात नहींवो खफा है तो कोई बात नहींइश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहींदिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहींदिन हो रोशन तो रात रात नहींदिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइलजा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहींऐसी भूली है कायनात मुझेजैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहींपीर की बस्ती जा रही है मगरसबको ये वहम है कि रात नहींमेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"और मैं लायक-ए-हयात नहीं
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिलामैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिलासाक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिलामुझ में बसी हुई थी किसी और की महकदिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिलाबस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहींवर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिलाउस से तरह तरह की शिकायत रही मगरमेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिलाएक एक कर के लोग बिछड़ते चले गएये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला