तेरे डिब्बे की वो दो तेरे डिब्बे कवो दो ...रोटियाँ कहीबिकती ..नहीं.माँ, महंगे ...होटलोमें आज भी.. भूख मिटतनहीं..
थे कल जो अपनेथे कल जो अपने..थे कल जो अपने घर में वो मेहमाँ कहाँ हैंजो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैंआँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तोथे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैंकुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैंपहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ है
मुझे हुक्म हुआ है कुछ और माँग उसके सिवामुझे हुक्म हुआ है कुछ और माँग उसके सिवामैं महफ़िल से उठ गया, कि मुझे ज़ुस्तुजू नहीं किसी और की