हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगाहर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगावो देखो दूर कहीं आसमाँ पिघलने लगातो क्या हुआ जो मयस्सर कोई लिबास नहींपहन के धूप मैं अपने बदन पे चलने लगामैं पिछली रात तो बेचैन हो गया इतनाकि उस के बाद ये दिल ख़ुद-ब-ख़ुद बहलने लगाअजीब ख़्वाब थे शीशे की किर्चियों की तरहजब उन को देखा तो आँखों से ख़ूँ निकलने लगाबना के दाएरा यादें सिमट के बैठ गईंब-वक़्त-ए-शाम जो दिल का अलाव जलने लगा
हर तमाशाई फक़त साहिल से मंज़र देखताहर तमाशाई फक़त साहिल से मंज़र देखताकौन दरिया को उलटता कौन गौहर देखताTranslationफक़त : सिर्गौहर : मोत