शायरी नहीं आती मुझे बस हाले दिल सुना रही हूँशायरी नहीं आती मुझे बस हाले दिल सुना रही हूँबेवफ़ाई का इलज़ाम है, मुझपर फिर भी गुनगुना रही हूँक़त्ल करने वाले ने कातिल भी हमें ही बना दियाखफ़ा नहीं उससे फिर भी मैं बस, उसका दामन बचा रही हूँ
ना पूछ मेरे सब्र की इंतहा कहाँ तक हैना पूछ मेरे सब्र की इंतहा कहाँ तक हैतू सितम कर ले, तेरी हसरत जहाँ तक हैवफ़ा की उम्मीद, जिन्हें होगी उन्हें होगीहमें तो देखना है, तू बेवफ़ा कहाँ तक है