डरता हूँ कहीं मैं पागल न बन जाऊँडरता हूँ कहीं मैं पागल न बन जाऊँतीखी नज़र और सुनहरे रूप का कायल ना बन जाऊँअब बस भी कर ज़ालिम कुछ तो रहम खा मुझ परचली जा मेरी नज़रों से दूर कहीं मैं शायर ना बन जाऊं
वह कहता है पागल है वो तोवह कहता है पागल है वो तोजो मेरी बातों को अपने दिल पर ले गईमैंने तो कभी उसे अपना माना ही नहीं थावो तो खुद-ब-खुद मेरी होकर रह गई